आर्य और काली छड़ी का रहस्य-40
अध्याय-14
सौदेबाजी
भाग-1
★★★
आर्य ने अपनी आंखें खोली तो उसने खुद को किसी और ही जगह पर पाया। इस जगह पर हल्का अंधेरा था, ऐसा अंधेरा जो अर्द चांदनी रात में देखने को मिलता है। उसके ठीक सामने लकड़ी का बना हुआ एक बंगला था जिसके ऊपर गली हुई घास पड़ी थी। इसके अलावा दूर-दूर तक बस बंजर इलाका था। जहां तक नजर जा रही थी वहां तक उसे जमीन और जमीन पर उगी घुटनों तक आने वाली कटीली झाड़ियों के अलावा और कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था।
आर्य ने खुद को देखा। उसके हाथ में उसकी रोशनी वाली तलवार नहीं थी, और उसके कपड़े नहीं बदले हुए थे। आश्रम में जहां वह लाल चोगे के अंदर था वही यहां वह किसी सादे सफेद रंग के कुर्ते पजामे में था। कुर्ते पजामे में उसके कुर्ते की जेब के पास एक निशान बना हुआ था जो काली छड़ी के निशान से मिलता था।
आर्य अभी खुद को और आसपास की जगह को देख रहा था तभी सामने वाले बंगले का दरवाजा खुला। दरवाजा खुलते ही आर्य का ध्यान उस तरफ चला गया। वहां से एक बूढ़ी औरत जिसका कुबड़ निकला हुआ था वह किसी लकड़ी के सहारे बड़ी मुश्किल से चलते हुए उसकी ओर आ रही थी।
आर्य की नजर बूढ़ी औरत की शारीरिक दशा गई। वह कुछ ज्यादा ही अजीब थी। मतलब वह बूढ़ी औरत जरूर थी मगर दूसरी बुड्ढी औरतों से बिल्कुल अलग। यहां तक कि वह इंसानों से भी अलग थी। उसका चेहरा बीच में से कटा हुआ लग रहा था, जिसके दोनों ही और दो दो आंखें एक साथ एक दूसरे में धंसी हुई थी। ऐसा हाल सिर्फ उसकी आंखों का नहीं था बल्कि पूरे शरीर का था। उसके हाथों में भी अलग अलग तरफ दो-दो हाथ थे। पैर भी घुटनो तक आ जाने के बाद 2-2 हो रहे थे। ऐसे लग रहा था जैसे वह एक बूढ़ी औरत नहीं बल्कि दो बूढ़ी औरतें हैं जो एक दूसरे में बुरी तरह से धसं गई। एक अजीब तरह से पैदा हुई अजीब विकृति वाली बूढ़ी औरत।
वह बूढ़ी औरत पास आई तो बोली “तुम्हारा स्वागत है लड़के, मेरे यहां... तुम यहां मेरे एक मंत्र की वजह से आए हो जिसके निष्क्रिय होते ही तुम वापस चले जाओगे” आर्य उसकी आवाज को पहचान गया। ऐसी कर्कश आवाज को वो भूल ही नहीं सकता था। यह वही आवाज़ थी जो उसे काली छड़ी की आवाज के रूप में सुनाई दे रही थी। इससे पहले वह आवाज या काली छड़ी के बारे में और सोचता सामने से अजीब सी दिखने वाली बूढ़ी औरत बोली “मैं ही हूं काली छड़ी। शैतान के शहंशाह ने अपनी शैतानी दुनिया में मुझे ही बनाया था। एक ऐसी ताकत और एक ऐसी खासियत के साथ जिसमें कोई भी मेरा सामना ना कर सके।”
आर्य ने यह सुना। मगर फिलहाल के लिए तो वह दुबारा उसकी दुर्दशा में खो गया। उसने ध्यान दिया कि जब वो औरत बोल रही थी तो उसके एक तरफ के आधे होठ अलग अंदाज में हिल रहे थे, और एक तरफ के आधे होठ अलग अंदाज से। मतलब उनका आपस में कोई मेल ही नहीं था।
आर्य उससे बोला “लेकिन तुम इस तरह की कैसे बनी हो। मतलब इतनी अजीब और डरावनी। तुम्हारे शरीर के हरेक हिस्से को बड़ी अजीब तरीके से तोड़ा मरोड़ा गया है। क्या किसी तरह की बीमारी है?”
“नहीं नहीं...” बूढ़ी औरत ने सामने से जवाब दिया। “यह किसी तरह की बीमारी नहीं, मुझे बनाया ही इस तरह का गया है। मेरी हालत ऐसी इसलिए है क्योंकि मुझे शैतान ने बनाया है ना कि भगवान ने। भगवान किसी नए जीव के निर्माण की कला में माहिर हैं, जबकि शैतान इस तरह का काम नहीं करता। मैं पहली ही थी जिन पर उन्होंने जोर आजमाइश की, और परिणाम स्वरुप मेरा रूप सामने आया।”
आर्य हैरान हुआ। वो शैतान और उसकी ताकत की परिकल्पना करने लगा। अगर वह जीवो का निर्माण तक करने की क्षमता रखता तब उसकी शख्शियत कुछ अलग ही होगी। मगर अभी यहां शैतान का विषय नहीं था। वह यहां कुछ बात करने के लिए आया था, ऐसी बात जिसके लिए उसे काली छड़ी ने बुलाया था। आर्य बोला “तुमने मुझे यहां किस लिए बुलाया था....? आखिर तुम किस तरह की सौदेबाजी करना चाहती हो...?”
“सबर करो लड़के... तुम्हें इतनी भी क्या जल्दी है। अगर तुम अपने साथियों को लेकर चिंतित हो रहे हो तो घबराओ मत, वहां अभी जो जैसा है वैसा का वैसा ही है। और जब तक मैं नहीं चाहुंगा तब तक उसमें कोई भी परिवर्तन नहीं होने वाला। तुम अगर यहां मेरे पास जिंदगी भर के लिए भी रुक जाओगे तब भी वहां की चीजें नहीं बदलेगी।” काली छड़ी अपने बंगले की तरफ चलते हुए बोली “आओ मेरे साथ अंदर चलो... हम वहां आराम से कुछ खाने पीने के साथ बात करेंगे।”
दोनों ही बंगले की तरफ चलने लगे। चलते वक्त आर्य आसपास देखकर सावधानी भी रख रहा था। चलते चलते आर्य ने बुड्ढी औरत से पूछा “तो वहां के हालात ठीक कैसे होंगे.... मतलब जहां से मैं आया हूं वहां के परिवर्तन आगे कैसे बढ़ेंगे?”
“हमारी सौदेबाजी पूरी होते ही।” काली छड़ी ने जवाब दिया। वह खुद को कष्ट में महसूस कर रही थी लेकिन इसके बावजूद उसका जवाब स्पष्ट था। “जैसे ही हमारी सौदेबाजी होगी, मैं वक्त को थाम देने वाले मंत्र को वापस ले लूंगी। मेरे मंत्र वापस लेते ही वक्त फिर से चल पड़ेगा, और परिवर्तन होने लगेंगे।”
दरवाजे के पास पहुंचते ही बूढ़ी औरत ने दरवाजा खोल दिया। दरवाजा खोलते ही आर्य की पहली मुलाकात गंदी और सड़ी हुई बदबू से हुई। ऐसे लग रहा था जैसे अंदर काफी सारे चूहे मरने के बाद पूरी तरह से सड़ गए हो। बदबू की वजह से आर्य का चेहरा भी अजीब सा हो गया था। वह अपनी नाक और आंखें सिकोड़ रहा था।
बूढ़ी औरत ने कहा “माफी चाहती हूं। मेरी कमजोर हालत की वजह से मैं यहां की साफ सफाई नहीं कर पाती। इस वजह से यहां की गंदगी आने वाले लोगों को रास नहीं आती। जो भी यहां आता है सबसे पहले अपने चेहरे को इसी तरह से बिगड़ता है।”
बूढ़ी औरत यह कहकर अंदर चली गई। उसके पीछे पीछे आर्य भी चला गया। आर्य अंदर चलता हुआ बोला “तुम्हारे पास तो जादू है। तुम दुनिया की सबसे ताकतवर छड़ी हो। इतनी ताकतवर कि कोई भी दुनिया में तुम्हारा सामना नहीं कर सकता। तो तुम जादू का इस्तेमाल कर साफ-सफाई क्यों नहीं करती।”
यह सुनकर बुड्ढी औरत एक दबी हुई हंसी हंसने लगी। उसने हंसते हुए कहा “सब शैतान की मेहरबानी है। मुझे बनाने के बाद वह मुझे पूरी तरह से आजाद नहीं छोड़ना चाहता था। इसलिए उसने मुझे मेरी दुनिया में जादू करने का अधिकार नहीं दिया। मैं अपनी इस रहने वाली दुनिया में कभी भी खुद के जादू का इस्तेमाल नहीं कर सकती। और हां, कोई दूसरा भी यहां अपने जादू का इस्तेमाल नहीं कर सकता। तुम एक तरह से कह सकते हो कि यहां जादू वैध नहीं है।”
बूढ़ी औरत ने वहां आर्य को बैठने के लिए कुर्सी दी। वह बंगले के हाॅल जैसी लगने वाली जगह पर थे। यहां बीचो बीच एक बड़ा सा डाइनिंग टेबल और इसके इर्द-गिर्द कुर्सीया पड़ी थी। बूढ़ी औरत ने यहीं से एक कुर्सी आर्य को दी थी।
आर्य कुर्सी पर बैठ गया। वही बूढ़ी औरत चलते हुए बंगले के किचन में चली गई। बंगले का किचन हाॅल के साथ जुड़ा हुआ था। किचन के एक तरफ की दीवार नहीं थी, जिससे हाॅल में बेठा शख्स और किचन में काम करने वाला शख्स दोनों एक दूसरे के साथ बात कर सकते थे।
आर्य कुर्सी पर बैठने के बाद बूढ़ी औरत की दुनिया वाली बात पर बोला “यह दुनिया आखिर है कहां? मतलब तुमने कहा मेरी दुनिया, तो मतलब यह उस दुनिया से अलग है जहां हम रह रहे हैं”
“हां बेशक। यह तुम्हारी दुनिया से बिल्कुल अलग है।” बूढ़ी औरत ने किचन से कहा “और वही बात तुम्हारे इस सवाल की यह दुनिया आखिर कहां है, तो तुमने मेरे दूसरे रुप को तो देखा ही होगा। यानी वो रूप जिसमें में असलियत में काली छड़ी हूं। खुद के लिए भी और लोगों के लिए भी। यह दुनिया उसी छड़ी के अंदर है। मैं उस लकड़ी की छड़ी के अंदर बनी दुनिया में रहती हूं।”
“तो तुम दोनों में फर्क क्या है.... मतलब काली छड़ी तुम हो या वह....?”
“हम दोनों ही काली छड़ी हैं। यह मेरा असली रूप है, और वह एक ऐसा रूप है जिसके माध्यम से मैं बाहरी दुनिया से संपर्क बना कर रखती हूं। उस रूप की वजह से मेरे जादू बाहरी दुनिया में असर करते हैं। उसी रूप की वजह से मेरी शक्ति और शैतानी मंत्रों का अस्तित्व है। शैतान ने अपने सारे मंत्र मुझे सौंप रखे हैं, और मैं उन मंत्रों का उसके लिए इस्तेमाल करती हूं। अभी मेरे मालिक मुझसे दूर है तो इस वजह से मेरा इस्तेमाल दूसरे लोगों के द्वारा हो रहा है्। यहां मुझे इस्तेमाल करने के लिए सौदेबाजी की जरूरत है। मेरे दूसरे लोगों के इस्तेमाल के लिए शैतान ने एक प्रक्रिया बनाई है, जिसका पालन करना जरूरी है।”
“और अगर कोई पालन ना करें तो?”
“तो मैं मंत्रों का इस्तेमाल नहीं करती। अर्थात मैं अपने मंत्रों का इस्तेमाल नहीं करती। अगर मैंने मेरे मंत्रों का इस्तेमाल नहीं किया तो कोई मेरा इस्तेमाल नहीं कर सकता। मेरे मंत्रों के ना इस्तेमाल करने के बाद वह अपने मंत्रों का इस्तेमाल करेगा, जिसका जैसा असर होगा वैसा परिणाम देखने को मिलेगा।”
आर्य अपनी जगह से खड़ा हुआ और किचन की तरफ चल पड़ा। “तुम्हारी मंत्र.... मैं इसे ठिक से समझा नहीं। मुझे तो इतना ही पता है तुम्हें इस्तेमाल करने के लिए तुमसे सौदेबाजी करनी पड़ती है। इसके बाद ही तुम्हारा इस्तेमाल होता है।”
“यही तो लोग धोखा खाते हैं।” बूढ़ी औरत ने आर्य की तरफ देखते हुए कहा “अपने मंत्र का इस्तेमाल करना, और मेरे मंत्र का इस्तेमाल करना दोनों ही चीजें अलग अलग है। मेरे मंत्र के इस्तेमाल के वक्त मैं अपनी बाहरी दुनिया के काली छड़ी वाले रूप से खुद संपर्क बनाती हूं। इससे वो रूप मेरे मंत्र को दिशा देता है और उसका असर सामने वाले पर होता है। वहीं जब कोई अपने मंत्र का इस्तेमाल करता है तो उसमें मेरी कोई भूमिका नहीं होती। उसके खुद के मंत्र की वजह से मेरा वो रूप उस मंत्र को दिशा देता है, और फिर उस मंत्र का असर देखने को मिलता है। एक तरह से कहा जाए तो सारा खेल मंत्रों का है। जिसके पास जितने ताकतवर मंत्र होंगे वह उतना ही ताकतवर होगा। मेरे पास ताकतवर मंत्रों का ढेर लगा पड़ा है, इसलिए मैं दुनिया में सबसे ताकतवर हूं। मुझे काली छड़ी कहा जाता है तो दुनिया में यह प्रचलित है की काली छड़ी ही दुनिया में सबसे ताकतवर है। जबकि असली हकीकत सिर्फ वही लोग जानते हैं जिन्होंने मेरा इस्तेमाल किया है। उन्हें पता है मेरे दो दो रूप हैं, जिसमें मेरा काली छड़ी वाला रूप सिर्फ एक माध्यम है मंत्र इस्तेमाल करने का, और मैं वो हुं जिसके हाथ में शैतान की सारी ताकत है।”
“और इसलिए जब सौदेबाजी होती हैं तो वह तुम्हारे मंत्र इस्तेमाल करने को लेकर होती है.....,जो कि तुम खुद इस्तेमाल करती हो। इसीलिए सौदा करते वक्त तुम्हारी बात माननी पड़ती है।”
“हां। शैतान के डर ने मुझमें काफी बदलाव किए हैं। शैतान ने बनाते वक्त तो मुझे काफी सरल और सीधा साधा रखा था, लेकिन जब उसने मेरी ताकत देखी तो वह पूरी तरह से घबरा गया। कोई मेरा इस्तेमाल ना करें इसलिए सबसे पहले उसने मुझे इतना जटिल कर दिया कि मुझे समझने वाला ही अपने बाल नोच ले। अगर मुझे समझना मुश्किल होगा तो इस्तेमाल करना भी मुश्किल होगा। दुनिया में काफी कम लोग ही ऐसे रहेंगे जो मेरा इस्तेमाल कर सकेंगे। इस बात ने शैतान का डर कम किया, और वह निश्चित रहने लगा कि हर कोई मेरा इस्तेमाल नहीं कर सकेगा। मगर मुझे कम लोगों का इस्तेमाल करना भी उसके लिए खतरनाक था। इसलिए फिर आगे चलकर उसने सौदेबाजी वाली प्रक्रिया बना डाली। यह एक सशक्त तोड़ था उसके डर का। इस प्रक्रिया में मुझसे कोई भी शैतान की मौत का सौदा नहीं कर सकता, बाकी जिसको मेरा जो करना है करें उससे कोई मतलब नहीं।”
बूढ़ी औरत ने अपने पास खड़े आर्य की तरफ मिट्टी का बना एक गिलास बढ़ा दिया। जिसमें कोई अजीब सा पेय था। वह देते हुए औरत बोली “मैं तुम्हें एक और चीज दिखाती हूं, जिससे तुम्हें मेरे बारे में और भी जानने को मिलेगा.... और तुम्हारी मुझे लेकर जिज्ञासा भी बढ़ेगी...।”
आर्य ने मिट्टी वाला गिलास पकड़ लिया। जबकि जो वह बताने वाली थी उसे लेकर उसे किसी तरह का एतराज नहीं था। काली छड़ी के बारे में तो वह जितना जाने उतना कम।
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